Awaaz ki bhi Drishti hoti hai
Date : 01-01-2007देस दिसावर – २००७
क्या आवाज की भी दृष्टि होती हे ? अगर आरती बुबना से यह सवाल पूछा जाये तो उनका जवाब होगा ‘ हां !‘ और यह नन्हा – सा जवाब उन्हें आसानी से नहीं मिला , इसे पाने के लिए उन्होंने जिंदगी की हर कठिनाई का डट कर सामना किया है | वौइस् विज़न कम्प्यूटर्स ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट नेत्रहीनों को कंप्यूटर प्रशिक्षण देनेवाले की निदेशिका आरती बुबना की दोंनो आंखों में जन्म से ही मोतियबिंद था | इसका पता उनके माता–पिता को चार वर्ष की अवस्था में चला |१९८० में सबसे पहले उनकी दायीं आंख का ऑपरेशन हुआ | यह ऑपरेशन ज्यादा कामयाब नहीं रहा | १९८२ में फिर उनकी बाईं आँख का आपरेशन हुआ , यह शल्यक्रिया सफल रही | १९८४ में उनकी दाईं आँख का ऑपरेशन फिर से किआ गया , पर आरती अपनी दाईं आँख की रोशनी पूरी तरह गंवा बैठी | १९८६ में आरती की बायीं आँख का पर्दा फट गया , इस वजह से फिर इस आँख का ऑपरेशन किया गया | इस ऑपरेशन के वक्त आरती दसवीं कक्षा में थी और दो – ढाई महीने स्कूल नहीं जा सकती थी | प्रिंसिपल ने परीक्षा में बैठाने से मना कर दिया की वह कैसे कर पाएगी ? पर आरती के पिता श्री विश्वंभर बुबना को अपनी बेटी पर पूरा विश्वास था | श्री बुबना ने आरती के लिये विशेष ट्यूशन लगवाया , जिसमें की टीचर कैसेट में पाठ्यक्रम रिकॉर्ड कर देते| आरती ने कैसेट सुन – सुनकर परीक्षा की तैयारी की और सफलता हासिल की | आरती का कहना है, ‘ मुझे ठीक से दीखता नहीं था , सुपरवाइजर ने के प्रश्न पत्र पढ़कर सुनाया | मुझे नहीं पता कि रेखागणित की व्रत रेखायें आपस में मिली या नहीं , हिंदी मराठी में लिखे गये शब्दों पर रेखायें ऊपर पड़ी या बीच में | पर मैंने किया , मैं सफल रही , क्योंकि मेरे पापा ने कहा था -मेरी बेटी करके दिखाएगी |’
इसी तरह बाईं आँख की हलकी दृष्टि के सहारे आरती ने बी. कॉम. किया और फिर एडमिनिस्ट्रेटिव मैनेजमेंट में डिप्लोमा भी हासिल किया | साथ ही बाईं आँख की रोशनी के लिए मेडिकल संघर्ष भी चलता रहा | जीवन की कर्मभूमि में आरती ने मुंबई के नेशनल एसोसिएशन फॉर ब्लाइंड में नेत्रहीनों को दिया जानेवाला पर्रिक्षण भी प्राप्त किया |पर उनके अंदर की उघमी प्रतिभा को वहा संतुष्टि नहीं मिली | आरती के परिवार का कंप्यूटर व्यवसाय है | उनके पिता व भाई ने उन्हे कंप्यूटर सीखने के लिए प्रोत्साहित किया | इसके अलावा आरती की एक दोस्त जो की अमेरिका में रहती थी उसने आरती को अमेरिका के हैङली स्कूल के बारें में बताया जो की नेत्रहीनों को कंप्यूटर प्रशिक्षण देता है | ‘ वहां से हमें पता चला कि कंप्यूटर पर कई सारे सॉफ्टवेयर ऐसे भी होते हैं जो की अंधे लोग पढ़ सकते हैं | इसे स्क्रीन रीडिंग सॉफ्टवेयर कहते हैं |’ आरती ने इस स्कूल से कंप्यूटर सिखा | आरती ने JAWS नाम का सॉफ्टवेयर अमेरिका से आयात किया | यह सॉफ्टवेयर विशेष रूप से नेत्रहीनों के लिए ही बनाया गया है जिसमें वे बिना किसी की मदद से स्वतंत्र रूप से कंप्यूटर पर काम कर सकें |आरती ने न सिर्फ खुद कंप्यूटर सीखा बल्कि अब वे इस शिक्षा से अन्य नेत्रहीनों की जिंदगी में भी रोशनी फैला रही है, बकौल आरती ‘ जब मुझे सिखाया तब कोई मुझे सिखाने नहीं चाहता था , इसलिए मैंने सोचा कि खुद सीखने के बाद मैं दूसरे नेत्रहीनों को कंप्यूटर सिखाऊंगी |” मैं अपने तरीके से देश की सेवा करना चाहती हूं |’ आरती के इस सुंदर प्रयास का नाम है ‘ वौइस् विज़न कंप्यूटर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट ‘, इस संस्थान से करीब ३०- ३५ छात्र कंप्यूटर शिक्षा पाकर निकल चुके हैं | वह कहती हे , ‘ जब वे लोग यहां आते है तो घबराये होते हैं | उनके जीवन को सही दिशा देना व कंप्यूटर की दुनिया में उन्हें सक्षमा बनना ही मेरे जीवन का उद्देश्य है |
आरती आज न सिर्फ अपना कंप्यूटर इंस्टिट्यूट चलती है , अपितु उन्होंने अपने परिवार के व्यवसाय को भी पूरी तरह सम्भाल रखा है |प्रकृति के अभिशाप को आरती की जीवटता ने वरदान में बदल दिया है |
- मोहनी भोज